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यह भी माया है / सुनीता जैन
Kavita Kosh से
तुम आए
मेरे प्रभु की माया थी
तुम नहीं रुके
यह भी माया है
किन्तु अणु-अणु जो
भीतर तक रंग आता है
वह कभी नहीं
बिसराता है
इसीलिए चौरासी-
लाख जन्म तक
शायद यह तय होना है
किसको कब क्या खोना,
क्या पाना है!