यह भी सच है / बुद्धिनाथ मिश्र
मैंने जीवन भर बैराग जिया है
सच है
लेकिन तुमसे प्यार किया है,
यह भी सच है ।
जानूँ मैं सैकड़ों निगाहें घूर रही हैं
फिर भी अपनी ही मैं राह चला करता हूँ
पर पतंग के, लौ दीपक की दोनों बनकर
मैं ही अक्सर नीरव रात जला करता हूँ ।
मैंने युग का सारा तमस पिया है
सच है ।
लेकिन तुमसे प्यार किया है
यह भी सच है ।
दुर्गम वन में राजमहल के खण्डहर-सा मन
वल्मीकों से भरा पड़ा तुम जिसे मिल गए
इन पाँवों की आहट शायद पहचानी थी
ख़ुद अचरज में हूँ, कैसे सब द्वार खुल गए ।
मैंने सपनों को वनवास दिया है,
सच है ।
लेकिन तुमसे प्यार किया है
यह भी सच है ।
वे जो प्राचीरों का पत्थर तोड़ के ख़ुश थे
देख न पाए कभी बावरी का काला जल
एक तुम्हीं थे सैलानी अन्दर तक आकर
जिसने गहरे सन्नाटे में भर दी हलचल ।
मैंने गैरिक चीवर पहन लिया है
सच है ।
लेकिन तुमसे प्यार किया है
यह भी सच है ।