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यह मत भूलो अहंकार से ख़तरा है / डी .एम. मिश्र

यह मत भूलो अहंकार से ख़तरा है
भ्रमित करे जो उस विचार से ख़तरा है

कांटों से तो फिर भी बचना है संभव
पर, जंगल के अंधकार से ख़तरा है

चिकनी-चुपड़ी बातों में तो आना मत
मृदुभाषी, उस मददगार से ख़तरा है

उतना जानी दुश्मन से भी नहीं मगर
जितना अपने राजदार से ख़तरा है

तन की साफ-सफाई तो होती रहती
मन के भीतर के गुबार से ख़तरा है

दौलत उतनी हो कि ज़रूरत पूरी हो
लेकिन दौलत बेशुमार से ख़तरा है