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यह मत सोचो किस क्षण हम छूट गये / प्रमोद तिवारी
Kavita Kosh से
भावुकता को
टुकड़ों में पाओगे
जब कभी
हकीकत से टकराओगे
जाओ
जैसे भी हो
आगे जाओ
यह मत सोचो
किस क्षण हम छूट गये
तुम गंध
तुम्हारा हमसे क्या नाता
हम तो पंखों पर
पर्वत ढोते हैं
निर्धन के सपनों के
मूल्यांकन में
निष्कर्ष नहीं
बस आँसू होते हैं
क्षमताओं के घेरे में
बंधे हुए
कैसे कोई अम्बर का
भाल छुए
यह सत्य सहा है
जब से प्राणों ने
मेरे बिम्बों से
दरपन रूठ गये
तुम चित्र हमेशा कहते आये हो
मेरी आड़ी तिरछी
रेखाओं को
फिर भी यह कथा
अधूरी रहनी है
हम लांघ न पायेंगे
सीमाओं को
ऐसा भी नहीं
तुम्हें हम भूलेंगे
या अन्य कोई
ऊंचाई छू लेंगे
हम नित्य कहेंगे
भीगी पलकों से
फिर भोर हुई
फिर सपने टूट गये