यह मन भयो न काहू काम को / स्वामी सनातनदेव
राग कालिंगड़ा, कहरवा 22.6.1974
यह मन भयो न काहू काम को।
राम-स्याम को नाम न लीन्हों, दास भयो नित चाम की॥
ठाम-ठाम काम हि कों खोजत, चेरो इन्द्रियग्राम को।
प्राननाथ को करत न सुमिरन, चिन्तन नित धन-धाम को॥1॥
दारागार अँगार धरे सिर भूलि स्याम सुख-धाम को।
गटकत रहत विषय-विष ही खल, लखत न ललित ललाम को॥2॥
करत सदा इत-उत को चिन्तन विसरि आत्म अभिराम को।
भूल्यौ हाय! अमर-पद पामर, चहत सतत सुख चाम की॥3॥
मरन वरन करि सरन न चाहत प्रभु-पद-पदुम स्वधाम को।
जनम-मरन की पैंड न छाँडत, गुनत न हरि-गुन-ग्राम को॥4॥
पियत न प्रीति-पियूष अभागो, भूल्यौ प्रानाराम को।
कहा भयो जो नाम कमायो अथवा सुख धन-धाम को॥5॥
या तन को है यही परम फल, और न काहू काम को।
निज की निजता त्यागि होय नित निज जन स्यामा-स्याम को॥6॥