यह मेरी गुमनाम ज़िन्दगी,
बिना बात बदनाम ज़िन्दगी।
सुबह ज़िन्दगी, शाम ज़िन्दगी,
गोया आठों याम ज़िन्दगी।
इंसानियत, इबादत, उल्फ़त,
इन का सदर मुक़ाम ज़िन्दगी।
कभी किसी के काम न आयी,
कितनी नमकहराम ज़िन्दगी।
‘रंग’ जिसे कहती है दुनिया,
सचमुच उसका नाम ज़िन्दगी।