भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
यह रहा उसका घर-8 / गगन गिल
Kavita Kosh से
यह रही
उसकी रसोई
यह लोई
आटे की
अधबनी रह गई थी
रोटी
तुम्हारे नाम की
पिछले जन्म में
अभी तक
बन नहीं पाई