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यह व्यवस्था है एक स्लो पायजन / शैलेन्द्र चौहान

आजकल
कमरे का आयतन
बहुत बढ़ गया है

विरल गैसें, धीरे-धीरे
स्थानापत्र कर रही हैं
सघन वायु को

मैंने तो नहीं करना चाहा था
यह परीक्षण
फिर भी हुआ अन्यान्य
प्रभावों, इच्छाओं, कारणों से

हम जब गतिहीन ही थे
हमारे हाथ अचानक
धीरे-धीरे खिसकते हुए
अलग हो गए

नाक की सीध में सरपट दौड़ते
क्रेज़ी लोग हँसे
आहिस्ता-आहिस्ता एक उत्तेजक द्रव्य
बहने लगा
मेरी मस्तिष्क-कोशिकाओं में
गरमाकर मेरे पैर
दौड़ने की मुद्रा में पहुँचे
मैं दौड़ा नाक की सीध में

थोड़े ही समय में
मस्तिष्क-कोशिकाएँ
होने लगीं शिथिल
गति हो गई धीमी
रुकने लगे पाँव

वे दौड़ रहे थे
दाएँ-बाएँ निकलते
मुझे धकियाते, खींचते
दुतकारते
मैं रुका खड़ा रहा
मूर्ख, काहिल, उज़बक की तरह
काल-परिवर्तन और परिवर्तित दृष्टि

दौड़ते हुओं के बीच खड़ा रहना
लगता है कितना अनुचित
अभद्र और अपराधपूर्ण
धृष्टता से कहा उन्होंने

सुनियोजित साजिश के तहत
व्यवस्था के नाम पर
मुझ खड़े हुए को
बिठा दिया गया इस कमरे में

कमरे की ऑक्सीजन
जब मैंने
अपनी साँसों से खींचनी चाही
तब मुझे महसूस हुआ
कि वहाँ तो निर्वात है
कर दिया है स्थानापत्र
पहले ही विरल गैसों ने
सघन वायु को
प्राणवायु नहीं है
और दरवाजे़ भी बंद हैं

फ़ासिज़्म नहीं तो
क्या कहा जाए इसे
एक महान कल्यााणकारी राज्य?