भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

यह शिला बड़ी चिकनी है / रामगोपाल 'रुद्र'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

यह शिला भी बड़ी चिकनी है, हिम-पिच्छिल है
कैसे इस पर अपनेपन को ठहराऊँ?
टक लग जाती है, ध्यान डूब जाता है;
क्या करूँ कि रुचि के पद में अभंग मैं गाऊँ?