यह सन्नाटा टूटे / दिनेश गौतम
यह सन्नाटा टूटे ऐसा गान ज़रूरी है।
घायल मन की हरे पीर वह तान ज़रूरी है।
जिनके हैं आहत मन, जिनके दुख संतप्त हृदय हैं,
जिनके हैं अवरुद्ध कंठ, टूटे सुर, टूटी लय है।
उनके मन उपचारित हों, दुख हृदय छोडकर जाए।
गीत मिले उन कंठों को वे सात सुरों में गाएँ।
ऐसी राह निकल आए ये ध्यान ज़रूरी है।
नन्हें दीपों को सूरज में हमें बदलना होगा,
अब जागे हैं हम, गिरने से हमें संभलना होगा।
नई रौशनी से रिश्तों की आओ बात चलाएँ,
नए दिनों की खातिर आओ बंदनवार सजाएँ।
आनेवाले सुदिनों का सम्मान ज़रूरी है।
अश्रु पोंछकर स्मित दे दें हम अधरों को सारे,
दिखे न कोर्इ्र हमें सिसकता, दुख-चिंता के मारे,
सबकी राहों से कंटक को हम बुहार लें बढ़कर।
मिले सभी को इक समान ही आगे बढ़ने अवसर।
सबके चेहरे पर खिलना मुस्कान जरूरी है।
उजियारे को अभी निमंत्रण देने जाना है।
रंगहीन सपनों में कितने रंग सजाना है।
अभी प्यार के कितने बिरवे रोपे जाने हैं।
और नई शाखों पर उसके फूल उगाने हैं।
कितना वक्त लगेगा यह अनुमान ज़रूरी है।