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यह समय मामूली नहीं / नंद चतुर्वेदी

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यह समय मामूली नहीं
ठीक सुर्यास्त के समय
पूरी किरणें गिनी जा सकती हैं
प्रवाह भी ऐसा वैसा नहीं
तूफान में लोग धीरज और पूरे आत्मबल के साथ
धिक्कारते हैं आततायी, अन्यायी को

यह समय मामूली नहीं
भयाक्रांत लोग भाषा व्यवहार के
सारे हिस्से को अपने पक्ष में करते हैं
वे बोलते नहीं
लेकिन बोलने वालों की आँख में आँख डालकर
पूछते हैं सवाल

यह समय मामूली नहीं
जिन्हें पुराने कागज बहीखाते
निकालकर देखने हों देखें
भूतकाल में बाप-दादाओं के चेहरे
अच्छे लगते हैं और जुड़ा हुआ
चक्रवर्ती ब्याज
जब आखिरी घड़ी आती है
यही होता है
आयु की फसल और जन्मपत्रियों पर
टिकती हैं लालची आँखें

यह समय मामूली नहीं
इतना बवण्डर धूल-धक्कड़ एक साथ
एक खास किस्म का अभ्यास करना पड़ता है
चलने के लिए
कुछ नजर नहीं आता
पक्षियों के पंख के सिवा
बहुत देर बाद आता है आकाश
लेकिन आता है अवश्य

यह समय मामूली नहीं
जिन्हें हों खाँसी, दमा या जुकाम
रक्तचाप या सत्ता का गठिया
वे जाएँ
दिखाएँ नब्ज ठीक मृत्यु के समय
बचें जरा सत्य की हवा बौछार से
अंधे और मूढ़ उतरें
ऊँड़े कुओं में
जिसमें पानी की बूँद तक नहीं है

जमीन इस तरह तो प्यासी नहीं रहेगी
इस तरह तो लोग नहीं देखेंगे
ऋतुओं का सर्वनाश
इस गैर-मामूली समय में
इतिहास के बन्द किवाड़ खुलंेगे
पूरे के पूरे तालाब में
सहस्त्रों कमल तैरते हुए
फैल जाएँगे।