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यह समय / राजेश जोशी
Kavita Kosh से
यह मूर्तियों को सिराये जाने का समय है ।
मूर्तियाँ सिराई जा रही हैं ।
दिमाग़ में सिर्फ़ एक सन्नाटा है
मस्तिष्क में कोई विचार नहीं
मन में कोई भाव नहीं
काले जल में, बस, मूर्ति का मुकुट
धीरे-धीरे डूब रहा है !