यह सौति सवादिन जा दिन तें, मुख सों मुख लायो हियो रसुरी।
निस द्यौस रहै न धरी सुघरी, सुनि कानन कान्हर की जसुरी॥
यक आपस बेधस बेध करै, असुरी दृग आनि ढरै अंसुरी।
अब तो न 'किसोर' कछू बसुरी, बंसुरी ब्रज बैरिनि तूं बसुरी॥
यह सौति सवादिन जा दिन तें, मुख सों मुख लायो हियो रसुरी।
निस द्यौस रहै न धरी सुघरी, सुनि कानन कान्हर की जसुरी॥
यक आपस बेधस बेध करै, असुरी दृग आनि ढरै अंसुरी।
अब तो न 'किसोर' कछू बसुरी, बंसुरी ब्रज बैरिनि तूं बसुरी॥