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यह स्कूल नहीं रसोइघर है / मनोज बोगटी / राजा पुनियानी

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यहाँ किताब जलने के बाद चावल पकता है
यहाँ पेन्सिल जलने के बाद दाल पकती है
आप सी ता्तक़वर कविता लिखना कोई बड़ी बात नहीं
इस चूल्हे में आग का जलना बड़ा बात है ।

सर, यह स्कूल नहीं रसोइघर है ।

ओला को नंगे पैर रौंदते हुए गरपगरप यहाँ आ पहुँचना
आँखें खुली रखकर उन्होंने देखे हैं सपने ।

वह मरे हुए सपनों की पूजा करनेवाली जाति है
वे निरक्षर देवताओं के भक्त हैं
वे जंगल-जंगल कन्दमूल खोदते हुए यहाँ आ बसे हैं
उनकी पगडण्डियाँ हैं ये नद-नदी
उन के पदचिह्न हैं ये गांव

अक्षर के पहुंचने से पहले यहाँ उनका गाना आ पहुँचा
गानों के आने से ही तो हिल पड़े थे नथनी
अक्षर के आने से पहले यहाँ आ पहुँचा था उनका खून
खून के आने से ही पहाड़ी गर्भवती हुई ।

खून से लथपथ गीत गुनगुनाकर उन्होंने
गांव में बुनी हुई बांस की थैली जैसे टेढ़े-मेढ़े रास्तों पे उन्होनें पेशाब किया है
कन्दमूल के ख़त्म होते ही मांँ ने पेट में बांधी थी लुंगी की फेर।
उस दिन से ही ये गांव उस लुंगी की फेर को बाँधा हुआ है
लुंगी की फेर बांधा हुआ ये गांव जिस दिन नंगे पैर घुसा संसद भवन में
उसी दिन बना था रसोइघर में स्कूल
या स्कूल में रसोइघर ।

रसोइघर में
क-एं चावल के लिए कतार बनाते हैं
ख-एं, अ-एं, कुछेक आकर, ऐकर दाल के लिए खड़े होते हैं
किसी दार्शनिक का एक ताक़तवर वाक्य किताब से सटी थाली उठा लेता है
किसी कवि का कालजयी हरूफ़ पेंसिल से सटा चम्मच पकड़ लेता है।

सर, यह स्कूल नहीं रसोइघर है।

उन के दिमाग के हरेक साख में
ज्ञान की अंकुर लगने से पहले ही भूख की फूल फटती है और मगमगाने लगती है

फूलों से निकलकर हरेक बीज आगे बढ़ता है रसोइघर के तरफ ही
क्योंकि वहाँ पकती है खिचड़ी।

शिक्षा का मतलब खिचड़ी ही तो है
सर, यह स्कूल नहीं रसोइघर है ।

जब पकती है खिचड़ी
बालक अक्षर थूक निगलते हुए देखते हैं हथेली खुन्ती की।
दाल से उड़ते हुए भाप ढक देती है ब्लैकबोर्ड व चाक
ढक जाती हैं किताबें और वहाँ उनके लिए लिखे गए जीवन सारे ।

आप ही पूछिए ना
‘पृथ्वी कैसी है?’
बच्चे बोलेंगे - ‘अण्डे की तरह’
क्योंकि आज पढ़्ने का दिन नहीं, अण्डा खाने का दिन है।
सर, यह स्कूल नहीं रसोइघर है ।

सरकार, अक्षरों में तो ज़हर डाल दिया आप ने
खिचड़ी कौन सी बड़ी बात है ?

डालिए, ज़हर डालिए ना !
लेकिन अगर बच जाते हैं कुछ अक्षर और उनसे बन जाते हैं कुछेक वाक्य
वे आप का ‘अन्त्य’ होंगे
सर, यह स्कूल नहीं रसोइघर है ।

मूल नेपाली से अनुवाद- राजा पुनियानी