यह स्वदेश की राम कहानी / रामेश्वर नाथ मिश्र 'अनुरोध'
शहर शहर में आग – आग है,
गांव गांव में पानी – पानी,
यह स्वदेश की राम कहानी
लैंप पोस्ट से खड़े हादसे, गली – गली में द्वारे – द्वारे,
विज्ञापन बन गयी जिंदगी, दीवारों पर खुनी नारे ;
देश – द्रौपदी की दु:शासन, खींच रहा है चूनर धानी
यह स्वदेश की राम कहानी
गरज रही आर्थिक दरिद्रता, आग बबूला है मंहगाई,
भार बन गया नैतिक जीवन, न्याय ढोंग का अंधा भाई,
मरणासन्न समाजवाद तो, छोड चुका है दाना पानी,
यह स्वदेश की राम कहानी
खोजे नहीं कहीं पर मिलते, भाई – चारे के प्रिय खंजन,
सब आँखों में अन्जा हुआ है, तुक्छ स्वार्थ का मारक अंजन :
वृक्ष – वृक्ष में उत्सृन्ख्लता, लता – लता में है मन मानी
यह स्वदेश की राम कहानी
कामशास्त्र में लिखी हुई है, सदाचार की परिभाषाएँ
लावारिश बच्चों सी फेंकी, हुई मनोहर अभिलाषाएं ;
डाल – डाल पर देशी चिड़िया, किन्तु विदेशी बोली बानी
यह स्वदेश की राम कहानी
परंपरा के नाग दंश से, आज विकल इंसानी काया,
क्रूर सिंहिका – सी जकड़े है, कट्टरता करूणा की छाया,
भोली शहनशीलता करती याद, यहाँ पर अपनी नानी
यह स्वदेश की राम कहानी
कोम्प्युट्री आंकणों में है, बंद जवानी की अंगडाई
देश – भक्ति का “चेक” भुनाता, गद्दारी का औरस भाई
नित्य विकास योजनाओं पर, होता रहता खर्च जबानी
यह स्वदेश की राम कहानी
त्राहि – त्राहि का शोर मचा है, मरे जा रहे सीधे – सादे,
कल किरीट बेहूदे शिर पर, बेईमान होंठों पर वादे,
गुनाहगार चेहरों पर रौनक, बेक़सूर आँखों में पानी,
यह स्वदेश की राम कहानी
जिनके हाथ देश की “पत” है, वे हि करते “वार “ अनोखे,
जिन पर है विश्वास सुजन का, वे जन – जन को देते धोखे,
बिन पतवार जा रही बहती, प्रलय सिंधु में नाव पुरानी
यह स्वदेश की राम कहानी
यह भारत की राम कहानी