यह हँसमुख मृदु दूर्वादल
है आज बना क्रीड़ा स्थल!
इसने मेरे हित फैलाया
श्यामल पुलकित अंचल!
मेरे तन की रज पर कल
यह दूब खिलेगी कोमल,
कोई सुंदर साक़ी उस पर
खेलेगा फिर कुछ पल!
यह हँसमुख मृदु दूर्वादल
है आज बना क्रीड़ा स्थल!
इसने मेरे हित फैलाया
श्यामल पुलकित अंचल!
मेरे तन की रज पर कल
यह दूब खिलेगी कोमल,
कोई सुंदर साक़ी उस पर
खेलेगा फिर कुछ पल!