भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

यह हमारा ही घर है / अमृता भारती

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वह मुझे देखता है

समुद्र के भीतर
मैं उसे छू रही हूँ
अपनी जलमयी छाया में

धरती और आकाश से अलग
यह हमारा ही घर है
जहाँ डूब गए हैं
हमारे पँख