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यात्राक सार्थकता / रामकृष्ण झा ‘किसुन’

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उठि रहल डेग
बढ़ि रहल वेग
संघर्ष-मोनिमे बाझल आ’ चकभाउर दैत
जीवनक नाह
द‘ रहल भुजाकें नव जोर
मन्सूबा केर उठइछ हिलोर
आगाँ बढ़बाकेर शपथ दैछ,
कंटकित पथक प्रत्येक ‘मोड़’
उद्घाटन अछि क’ रहल जेना
प्रत्येक बेर भोथिआएब
एकटा नव दिशाक
नव सूर्योदय केर उद्घोषक
होइछ अन्हार जहिना निशाक
बुझि लेत अवश्ये
हमरा पाछाँ आबि रहल नबका पीढ़ी
सृष्टिक आरम्भहिसँ ल’क’
अछि बनल मृत्यु सब बेर हमर
जीवनक सुदृढ़ अगिला सीढ़ी
यात्राक प्रतिचरण सार्थक अछि
ई सबटा श्रेय इजोतक थिक
जे एक-एक ‘इति’
अति सशक्त
ऊर्जस्वल ‘अथ’ केर द्योतक थिक
आहत सैनिक केर घाव जकाँ
भरि रहल पराजय भावक व्रण
अगिला मोर्चा लेल प्रस्तुत अछि
शाश्वत योद्धा
ल’ नूतन प्रण
नहि अस्वीकृति
नहि अविश्वास
नहि निराशाक कटु गाथा अछि
असफलता केर प्रत्येक श्वासमे
दीपित जीवन-आस्था अछि।