यात्रा का सुख / मीना अग्रवाल
थ्री टियर का डिब्बा
यात्रियों का आवागमन
सीट नंबर सात और आठ
दरवाज़े के बिल्कुल पास
कभी कुली सामान के साथ
कभी गरमागरम चाय की आवाज़
तो कभी नैस्कैफ़े कॉफ़ी
कभी कटलेट वाला
तो कभी पकौड़े वाला
कभी मूँगफली
तो कभी बूट पालिश
भिन्न-भिन्न धर्मों वाले
भिन्न विचारधाराओं वाले
सभी हैं एक डिब्बे में !
बूढ़े हैं, बच्चे हैं, युवा भी हैं
बच्चे मगन हैं कभी इधर, कभी उधर
कभी ऊपर तो कभी नीचे
कभी झाँकते हैं दाएँ तो कभी बाएँ,
उत्साहित हैं सभी घूमने के लिए
छुट्टियों में देखने के लिए
नए-नए अजूबे
बुजुर्ग कभी लेटते हैं
तो कभी बैठते हैं
कभी खाँसते हैं
तो कभी बच्चों से करते हैं
मीठी-मीठी बातें, कभी खो जाते हैं
अपनों के सपनों में,
कभी झाँकती है उदासी
उनकी सूनी एकाकी आँखों में,
तभी गाड़ी की चकमक चूँ
तोड़ देती है भाव-शृंखला
गाड़ी कभी धीमी
तो कभी दौड़ती है सरपट
वह देती है संदेश
निरंतरता और गतिशीलता का
स्टेशन पर
उतरे हैं सभी यात्री
चल दिए हैं अपने रास्ते पर
अपनी पगडंडियों पर
अपने गंतव्य पर
पहुँचने की धुन में !
कुछ यात्रियों के रिश्तेदार,
संबंधी या फिर बच्चे आए हैं
लेने अपनों को
आज अंतिम दिन है साल का
कल होगा नए साल का
पहला नया दिन
खिलेगा नया सूरज
ऊर्जा देगी नई धूप
प्रज्वलित होगा
आशा का नया दीप !