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यात्रा की तैयारी / आलोक कुमार मिश्रा

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दस दिशाओं के अलावा वह कोई ग्यारहवीं दिशा है
जहाँ से आती है तुम्हारी याद
मैं देख ही नहीं पाता तो थामूं क्या
इसके आते-जाते सिरे

चार महासागरों से अलग वह एक पाँचवा महासागर है
तुम्हारी स्मृतियों की हिलती हुई छाया में
नाप रहा हूँ जिसे किसी बेचैन मछली की तरह
जानता हूँ एक दिन मर जाऊँगा इसी में

सात सुरों से परे वह कोई आठवाँ ही सुर है
जिसमें पुकारता है मेरा हृदय तुम्हें
तुम समझो भी तो कैसे
मिलोगी तब बताऊंगा

अनंत ग्रह नक्षत्रों से परे वह कोई और दुनिया है
जहाँ मिलने का वादा है तुम्हारा मुझसे
तमाम उम्र गुजरेगी इसी इंतजार में
अभी तो यात्रा की बस तैयारी हुई है।