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यात्रा है तो मन मगन भी है / जहीर कुरैशी
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यात्रा है तो मन मगन भी है
साथ मेरे मेरी थकन भी है
सोचने के लिए धरा ही नहीं
सोचने के लिए गगन भी है
गाँव से एक कोस चलते ही
एक जंगल है जो सघन भी है
रेडियो की खबर है, दंगे में
सौ मरे शहर में अमन भी है
तुम ग़ज़ल गा रही हो कुछ ऐसे
मुझको लगता है यह भजन भी है
ज़िन्दगी खुरदुरी नहीं केवल
ज़िन्दगी रेशमी सपन भी है
बुद्धि हर बार भूल जाती है
व्यक्ति के पास एक मन भी है