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यात्रा (आठ) / शरद बिलौरे
Kavita Kosh से
जब हम टी० टी० को लापरवाही से
टिकटें पकड़ा कर
प्लेटफ़ार्म से बाहर निकलते हैं
तब चारों ओर
गर्दन घुमाकर देखते हुए
सोचते ज़रूर हैं
कि हमारा सहयात्री
अब तक
प्लेटफ़ार्म पार कर गया होगा।