भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

यात्रा (आठ) / शरद बिलौरे

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जब हम टी० टी० को लापरवाही से
टिकटें पकड़ा कर
प्लेटफ़ार्म से बाहर निकलते हैं
तब चारों ओर
गर्दन घुमाकर देखते हुए
सोचते ज़रूर हैं
कि हमारा सहयात्री
अब तक
प्लेटफ़ार्म पार कर गया होगा।