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यात्रा / कुमार कृष्ण
Kavita Kosh से
जब आता है इस धरती पर मनुष्य
वह होता है निडर
नहीं जानता डर नाम की किसी चीज़ को
धीरे-धीरे लगता है डरने
धरती की हर चीज़ से
उसे डराते हैं उसके तमाम विश्वास
उसके सपने, रिश्ते, उसके अपने
टूट जाती है उसकी-
हिम्मत और हौसलों की लाठी
डरने लगता है वह अपनी ही परछाई से
डरता हुआ मनुष्य
कहीं से भी नहीं लगता मनुष्य।