यात्रा / नरेश अग्रवाल
यात्राओं में मिलते हैं अलग-अलग तरह के लोग
सभी के साथ एक हो जाते हैं हम
उनकी भाषा जानने की कोई जरूरत नहीं
वे जानते हैं कि हमें क्या चाहिए
शायद नये लोगों को देखकर
मोर भी खोल देते हैं अपने पंख।
हमारे कार्यकलाप बिल्कुल बंधे हुए
इस पवित्र नदी में स्नान करना अच्छा लगता है
इसकी भव्यता में हमारा प्रेम डूब जाता है
लोग कह रहे थे इसमें पानी अभी कम है
फिर भी विशाल थी इसकी भाव-भंगिमा।
साधुओं की तरह मंत्र उच्चारण नहीं आता है हमें
लेकिन नाव की सवारी अच्छी लगती है
यहां जल के दोनों ओर भवन और धर्मशालाएं हैं
वे ही उपासना के उत्तम स्थल
वैभव से अधिक सुख प्रार्थना में शामिल होने में
इस शाम की आरती में
सैकड़ों दीयों का विर्सजन किया गया
दीये नदी में बह रहे थे एक कतार में
हर पल थी हमारी उत्सुकता उनकी तरफ
वे हमारे हाथ के जलाये हुए दीये
जल और प्रकाश दोनों का मिलन था यह
दोनों एक साथ बढ़ते हुए
हमारी यात्राओं की तरह उनकी यात्रा भी सुखद।