भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
यात्री ध्यान दें / देवनीत / रुस्तम सिंह
Kavita Kosh से
आ जाओ अन्दर
मेरी कोठड़ी का लाईव हॉल
मैट पर नाराज़ पड़ा पायदान
साथ ही अण्डरवियर
और रुमाल
पड़े हैं
रुमाल के साथ ही कल बाँधी पगड़ी के
खण्डरात
मेहदी हसन की ग़ज़ल
चल रही है
बोतल और साथी उसकी अन्य सामग्री में
घिरा हूँ मैं
अपना अकबर हूँ मैं
अब
समय
मेरा बीरबल नहीं ।
मूल पंजाबी भाषा से अनुवाद : रुस्तम सिंह