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याददाश्त / रचना दीक्षित
Kavita Kosh से
मैं कुंठित हूँ,
व्यथित हूँ,
क्षुब्ध हूँ,
क्या हृदय ही जीवन है?
मैं भी तो हृदय की खुशी में खुश
उसके दुख,
असफलता,
दर्द, पीड़ा में
उसके साथ ही
ये सब अनुभव करता हूँ
फिर हृदय ही क्यों
क्या सही रक्तचाप,
हृदय गति
रक्त विश्लेषण
और
धमनियों में वसा
न जमने देना ही
जीवन है
जब भी हृदय होता है
क्षुब्ध, कुंठित,
मैं सहमता हूँ,
सिकुड़ता हूँ
अवसादग्रस्त होता हूँ,
भूल बैठता हूँ,
अपने आप को
धीरे धीरे देता हूँ
शरीर को
भूलने की बीमारी
मैं, हाँ! मैं
मस्तिष्क का
उपेक्षित हिस्सा
अध:श्चेतक (हाइपोथेलेमस) हूँ
जब भी किसी
अनहोनी के बाद
आता है चिकित्सक
जांचता है,
देता है,
दवाइयां जाने किसकी
नहीं सोचता, है तो,
मेरे बारे में