यादें और चुप्पियाँ / मनोज भावुक
दोस्त तुम यादों में हो ,वादों में हो , संवादों में हो
गीतों में हो , ग़ज़लों में हो , ख़्वाबों में हो ,
चुप्पी में हो, खामोशी में हो , तन्हाई में हो ,
महफिल में हो, कहकहो में हो और बेवफाई में भी हो
तुम उन चिठ्ठियों में हो जो तुम्हें दे न सका ,
तुम उस टीस में भी हो जो तुम देते रहे
और मै उस मीठे दर्द को अल्फाजों में बदलता रहा
तुम उस खुशी में भी हो जो तुमने मुझे अनजाने में दी
.. इतना कुछ होने के बाद तुम अगर मुझसे रूठ भी जाओ
तो अलग कैसे हो पावोगे ?
नाराज होकर फेसबुक से अन्फ्रेंड कर दोगे ,
डायरी से फाड़ दोगे, ग्रीटिंग्स कार्ड जला दोगे
लेकिन मेरी यादें ?
जानते हो ….
यादें और चुप्पियाँ एक दुसरे के directly proportional होतीं हैं
चुप्पियाँ ..यादों के समन्दर में डुबोती चली जाती हैं
कहते हैं .. खामोशी और बोलती है …..echo भी करती है .
पगला देती है आदमी को …..
इसलिए शब्दों का और आंसुओं का बाहर निकलना बहुत जरुरी है.
मै बाहर निकल आया हूँ , तुम भी बाहर आ जाओ .
अपने ego के खोल से .
मै भी sorry बोलता हूँ , तुम भी बोलो
….. बोलो , तुम्हारा भी कद ऊंचा हो जाएगा
— अब छोडो भी इन बातों को , गलती किसी की भी हो ..
पर ह्त्या तो दोस्ती की हुई न ?
….और हमारी दोस्ती इतने कमजोर धागों से नहीं बंधी है
कि एवीं टूट जाय .
न दोस्ती को एवीं टूटने देंगे… न जिन्दगी को
क्योंकि दोनों अनमोल हैं