भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
यादें लगीं सताने तेरे नाम की / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
अग जग की बातें मेरे किस काम की।
यादें लगी सताने तेरे नाम की॥
जैसे जैसे दिन ढलता तन
मन थकता-सा जाता है,
जीवन का यह गतिमय पहिया
चलता रुकता-सा जाता है।
ऐसे में दो घड़ी मिले विश्राम की।
यादें लगी सताने तेरे नाम की॥
कैसे उसे भुलाये कोई
बसा रहे जो नित तन मन में,
रोम रोम में हर धड़कन में
सांसो के गतिमय स्पंदन में।
उसके रंग सजाती बेला शाम की।
यादें लगी सताने तेरे नाम की॥