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यादें / मधुप मोहता
Kavita Kosh से
मचल रही हैं यूं भली यादें, लहर-लहर जैसे झीलों में पानी,
खुली किताबों में बंद पन्नों के हाशियों पर लिखी कहानी।
क्यूं तय किया था सफर हवाओं का, पतझड़ों में पत्तियों ने,
सुना रहे हैं ये बूढ़े बरगद, गुज़रे मौसम की वो कहानी।
मेरी गली से गुज़र रही है, सुर्ख़ जोड़े में नवेली दुल्हन,
फिर आज रात को आबाद होगी, कस्बे की कोई हवेली पुरानी।
सुना है सरहद से लौट आए हैं, कई सिपाही छुट्टियों में,
किसी झरोखे से झांकेगी ताई, किसी से दादी, किसी से नानी।
ढोलकों पर थिरक रहे हैं, अमिया की डाली, सावन के झूले,
लाल मेंहदी, सुनहरे कंगन, कजरारी आंखें, और सांझ धानी।
कोई भिखारिन सुना रही थी, भूखे बच्चे को जब ये लोरी,
एक था राजा, एक थी रानी, कहां था राजा, कहां थी रानी।