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यादें / महेश सन्तोषी
Kavita Kosh से
यादें, प्यार की साँसे तो,
गिनती रहती हैं
पर, प्यार की धड़कनों को
न छू पातीं, न सुन पातीं
समय में सिमटकर भ!
समय को समेटकर चलता है प्यार
हार न भी माने पर,
यादों पर समय को
जीत भी तो नहीं पातीं,
तुम्हारा विर्सजन,
एक निर्मम सत्य होकर भी
समय के सन्दर्भ में
तुम न उम्र की सुबह हो, न शाम हो
सिर्फ दोपहरी हो!