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यादों की अलमारी बन्द करें / यश मालवीय
Kavita Kosh से
यादों की अलमारी बन्द करें
रात हुई काफ़ी,अब सो जाएँ
ख़ुद ही से दूर कहीं हो आएँ
समीकरण बीते उजियारों के
हल होकर भी न कभी हल होते
मरुथल का ओर-छोर जीते हैं,
आँखों में यूँ गंगाजल होते
यादों की अलमारी बन्द करें
रात हुई काफ़ी,अब सो जाएँ,
आँसू को आँसू से धो जाएँ
छवियों के जुड़े हुए मेले में
कैसा है खो-खोकर मिल जाना
डायरी पुरानी यह कहती है,
मुरझाकर भी मुमकिन खिल पाना
यादों की अलमारी बन्द करें
रात हुई काफ़ी,अब सो जाएँ
मिलें नए होकर यूँ खो जाएँ
आभारी, मन भारी, सिर भारी,
सुबहों का इन्तज़ार जी लेगें
विगत के कसैले से,घूँटों से,
लेकर अपनी मिठास पी लेगें
यादों की अलमारी बन्द करें
रात हुई काफ़ी,अब सो जाएँ,
कल उगने को, ख़ुद को बो जाएँ ।