भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
यादों की तस्वीरे नम हैं / शीतल वाजपेयी
Kavita Kosh से
यादों की तस्वीरें नम हैं।
चले बाँह में बाँहें डाले
लेकर अपने साथ उजाले
हर मंज़िल आसान लगी थी
फूलों से लगते थे छाले
तुम बिन है सावन आँखों में
मन में पतझर का मौसम है।
दर्द कचोट रहा है मन को
तरस रहा है आलिंगन को
सूनापन केवल सूनापन
भेद रहा मन के आंगन को
पलकों पर छाई जो बूँदें
कैसे मैं कह दूँ शबनम हैं
यूँ तो हरा भरा घर मेरा
पर तुमने जबसे मुँह फेरा
केवल मेरे ही कमरे में
तनहाई ने डाला डेरा
यादों ने ही दर्द दिये हैं
यादें ही उनका मरहम हैं