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यादों की महफ़िल में / अवनीश सिंह चौहान
Kavita Kosh से
बीत गए हैं
दिवस-मास औ'
बीत गए हैं पल
यादों की महफ़िल में
ढरके
नैनों से मृदु जल !
बसता है जल
कण-कण में
जल है जीवनदानी
जल से
लिक्खी जाती
जीवन की अमर कहानी
छिपे हुए इसमें
अनसुलझे
सब प्रश्नों के हल !
तुम आए थे
ख़ुद चलकर
मेरा बाग़ सजाने
आकर यों ही
चले गए
करके नए बहाने
यही बहाने
मन में मेरे
करते हैं हलचल !
पास रहो तुम
दूर रहो
सदा फूल-सा महको
भोर किरण-सा
खिल-खिल कर
गौरैया-सा चहको
यही सोचता
रहता हूँ मैं
आँखों को मल-मल !