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यादों के फूल / रमेश रंजक
Kavita Kosh से
बिखर गईं पुरवा की अलकें सारे घर में
फैल गई एक लहर गरम-गरम अन्तर में
अँकुराए यादों के फूल ।
जाने किन धूप के पहाड़ों ने
रोक लिए
बरसों के अनलौटे पाँव
कन्धों तक कुहरीले सगर में
डूब गए
सतरंगी सपनों के गाँव
जाने क्यों अधभीगे, अधप्यासे आँचर में
गरमाए यादों के फूल ।
बगुलों से वे उजले-उजले दिन
चले गए
बाँध कर कतारों में गीत
आकाशी आँखों की बदरीली
पलकों पर
झूल गया प्यास का अतीत
जाने क्यों बहुरूपिया मौसम ने बाखर में
छितराए यादों के फूल ।