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यादों के सिक्के / अर्चना कुमारी
Kavita Kosh से
जब विस्मृति के मकड़जाल में
स्मृतियाँ फड़फड़ाकर मर जाएँगी
अतीत छूट जाएगा पीछे
वर्तमान की दौड़ में
सामान्यतया शोर होगा हर तरफ
और सामान्य होगी कदम की चाल भी
आदतन सब होता रहेगा पूर्ववत
किसी देहरी पर बिखरे होंगे
कलश से भरे अक्षत
उगे होंगे हल्दी वाले पीले हाथ
उजली भीत वाले द्वार पर
आँगन महावर से सजा होगा..........
कोई छूट जाएगी
तुम्हारी उस पैन्ट की जेब में
जिसे पहनकर आखिरी बार मिलोगे तुम
उस आखिरी वक्त में अधिकार के........
देखना किसी दिन खनक जाऊँगी
उसी पैन्ट की बाँयी जेब में
किसी पुराने सिक्के संग.......
तब भी कविता लिखेंगे
हर रोज भूलेगें
हर रोज याद आएँगे.......!!!