यादों में यादों का एक शहर छूटा / रवि सिन्हा
यादों में यादों का एक शहर छूटा
दरिया के उस पार अकेला घर छूटा
सात समन्दर पार चले चलते आये
चिलमन के उस पार दीद-ए-तर छूटा
पीछे देखूँ तो पत्थर हो जाऊँगा
मंसूबों का आतिश-ज़दा<ref>जिसमें आग लगी हो (in flames)</ref> नगर छूटा
ऐसी नींद कि सपने सारे दफ़्न हुए
धरती कुछ इस तरह मिली अम्बर छूटा
मुस्तक़्बिल<ref>भविष्य (future)</ref> का नक़्शा खेंचा काग़ज़ पर
क़ाइद<ref> रहनुमा, नेता (leader)</ref> के पैरों से यहीं सफ़र छूटा
मिट्टी की बुनियाद सभी ता'मीरों<ref>संरचना (structure)</ref> की
मे'मारों<ref>शिल्पी, राजमिस्त्री (architect, mason)</ref> का फिर भी देख असर छूटा
उछल कूद ये कर लेंगें अब बेतरतीब
लफ़्ज़ों से क़ाफ़िये<ref>तुकांत (rhyme); बहर (bahr) - छंद (meter in poetry)</ref> बहर का डर छूटा