भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

याद ? / केदारनाथ अग्रवाल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

याद ?

है आवाज़

पथ के पेड़ की,

राहगीरों के लिए

जो गए

लौटे नहीं
इस राह से !

वह

सुबह की चांदनी है

ओस से भीगी हुई

धूप का दर्पण लिए

ओट में गूंगी खड़ी ।

वह

नदी के नील जल की वासना है

जो कगारों को

डिगाए जा रही है।