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याद आई पुरानी सखियों की / अनु जसरोटिया

याद आई पुरानी सखियों की
खुल गयीं खिड़कियाँ ख़यालों की

कोई काँटों को पूछता भी नहीं
धूम है हर तरफ़ गुलाबों की

क़ौ'ल और फ़े'ल एक जैसा हो
शान है इस में बादशाहों की

बन के दासी मैं आरती गाऊँ
कृष्ण की, राम की, शिवालों की

माँद है ताब रूबरू तेरे
माहताबों की आफ़ताबों की

मुझ को अपनी तरफ़ बुलाती है
ये घनी छाँव देवदारों की

झूमते गाते अब्र छा जायें
कह रही है ये रुत बहारों की

हम को इक दिन 'अनु' बसानी है
एक दुनिया अलग किताबों की।