भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

याद आता है गांव बस कि सपना बन कर / रमेश तन्हा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

 
याद आता है गांव बस कि सपना बन कर
गह दर्द का गह प्यार का रिश्ता बन कर
गह ग़म की घड़ी धूप पे छा जाता है
बरगद के घने पेड़ का साया बन कर।