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याद आती रही वो नज़र रात भर / फ़रीद क़मर

याद आती रही वो नज़र रात भर
एक खुश्बू रही हमसफ़र रात भर

रात भर शहर यादों का जलता रहा
दिल को डसता रहा कोई डर रात भर

एक सूरज अंधेरों की ज़द पर रहा
शब् से लड़ती रही इक सहर रात भर

तेरी यादों से कमरा मुअत्तर रहा
जगमगाते रहे बामो-दर रात भर

ज़िन्दगी ज़ख्म देती रही सारे दिन
तेरी यादें रहीं चारागर रात भर

शहरे-आवारगी में भटकते हुए
याद आया बहुत मुझको घर रात भर

मुझको खुश्बू के जैसे ये पागल हवा
ले के फिरती रही दर-ब-दर रात भर

चाँद में तेरी तस्वीर बनती रही
कोई फिरता रहा बाम पर रात भर