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याद आती है / सुरेश विमल
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एक टूटी-सी मचैया याद आती है
गांव की दोपहर भैया याद आती है।
विश्राम का जब समय मिलता है कभी
नीम, पीपल, बरगदों की याद आती है।
कुदाली थामे हुए ये हाथ रुक जाते
खेत-क्यारें गाँव की जब याद आती है।
बैठे हुए यूँ ही अचानक आँख भर आती
बूढ़े विवश मां-बाप की जब याद आती है।
तैर जाती देह भर में एक मीठी-सी चुभन
प्रतीक्षारत ब्याहता जब याद आती है।
छोड़ जाती है मुझे असहाय-सा इस शहर में
बिछड़े हुए घर-द्वार की जब याद आती है।