याद आया मुझे तू ऐ मेरे वतन / सतीश शुक्ला 'रक़ीब'
याद आया मुझे तू ऐ मेरे वतन
हैं तहे दिल से तुझको हज़ारों नमन
रो रही है ज़मीं जल रहा है गगन
ना ये धरती रहे ना रहे ये गगन
सब लगे नाचने आज होके मगन
याद आया मुझे तू ऐ मेरे वतन
लहलहाते हुए खेत और क्यारियाँ
गाँव, पीपल, कुआँ और पनहारियाँ
याद आती है बरखा वह ठंडी पवन
याद आया मुझे तू ऐ मेरे वतन
याद आती है रिम-झिम वह बरसात की
झोपड़ी, खेत और चान्दनी रात की
और सवेरे के सूरज की पहली किरन
याद आया मुझे तू ऐ मेरे वतन
गाँव के मेले और बैठकें गाँव की
खेल और कूद वो फुरसतें गाँव की
रात का चैन और दिन की सारी थकन
याद आया मुझे तू ऐ मेरे वतन
बाद बरखा के आकाश पर वह धनक
चूड़ियों की खनक पायलों की झनक
गोरे गोरे थिरकते हुए वह बदन
याद आया मुझे तू ऐ मेरे वतन
वो नदी के किनारे बसी बस्तियाँ
रात-दिन चलती रहती वो पनचक्कियाँ
दूर, याद आ के करती हैं मन की थकन
याद आया मुझे तू ऐ मेरे वतन