भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

याद उस की जो पास आ बैठी / अलका मिश्रा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

याद उस की जो पास आ बैठी
नींद आँखों से दूर जा बैठी

उस से मिलने की जुस्तजू जाएगी
ख़्वाब फिर से नए सजा बैठी

बन्दगी कर के एक पत्थर की
उसको अपना ख़ुदा बना बैठी

उसने आँखों में मेरी क्या झाँका
आईना मैं उसे बना बैठी

चाँद पाने की ख़्वाहिशें जागीं
दूर अपनी ज़मीं से जा बैठी