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याद एक पल की / रमेश रंजक

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अमृत की बूँद हुई याद एक पल की
याद एक पल की ।

तिनके-सी तैर गई तन्हाई
दर्द के समुन्दर से
खारी तट ने माँगी उतराई
भारी-भारी स्वर से
अधरों ने सौंपी धुन शरबती ग़ज़ल की ।

धुँधली तस्वीरों को पोंछ दिया
सन्तरी सवेरे ने
पर्वती गुहाओं में दम तोड़ा
अजगरी अन्धेरे ने
ख़ामोशी चीर गई आरती कमल की ।

थकन भरे सपनों के सिरहाने
चन्दनी हवा उतरी
प्यास के सिवाने पर ढुलक गई
ऋतुओं की रस-गगरी
पोर-पोर भीज गई चुनरी हियतल की ।