भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
याद एक पल की / रमेश रंजक
Kavita Kosh से
अमृत की बूँद हुई याद एक पल की
याद एक पल की ।
तिनके-सी तैर गई तन्हाई
दर्द के समुन्दर से
खारी तट ने माँगी उतराई
भारी-भारी स्वर से
अधरों ने सौंपी धुन शरबती ग़ज़ल की ।
धुँधली तस्वीरों को पोंछ दिया
सन्तरी सवेरे ने
पर्वती गुहाओं में दम तोड़ा
अजगरी अन्धेरे ने
ख़ामोशी चीर गई आरती कमल की ।
थकन भरे सपनों के सिरहाने
चन्दनी हवा उतरी
प्यास के सिवाने पर ढुलक गई
ऋतुओं की रस-गगरी
पोर-पोर भीज गई चुनरी हियतल की ।