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याद का फूल सर-ए-शाम खिला तो होगा / हसन 'नईम'

याद का फूल सर-ए-शाम खिला तो होगा
जिस्म मानूस सी ख़ुशबू में बसा तो होगा

क़तरा-ए-मय से दबा रात न तूफ़ान-ए-तलब
मुझ पे जो बीत गई रात सुना तो होगा

कोई मौसम हो यही सोच के जी लेते हैं
इक न इक रोज़ शजर ग़म को हरा तो होगा

ये भी तस्लीम कि तू मुझ से बिछड़ के ख़ुश है
तेरे आँचल का कोई तार हँसा तो होगा

वो न मानूस हों कुछ ख़ास अलाएम से ‘हसन’
एक क़िस्सा मिरी आँखों ने कहा तो होगा