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याद तुम्हारी साथ हमारे फिर हो क्योंकर ग़म साथी / रंजना वर्मा
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याद तुम्हारी साथ हमारे फिर हो क्योंकर ग़म साथी।
हुआ नहीं यदि मिलन करूँ क्यों तब भी आँखें नम साथी॥
कब सोचा था इतनी जल्दी रात ढलेगी पूनम की
और धुंधलके कर जाएंगे उजियारों को कम साथी॥
किसने किसका साथ दिया है पथ की अंतिम मंजिल तक
सच को क्या पहचाने कोई प्यारा हुआ भरम साथी॥
गई बहार न जाने कैसे बैरन पतझड़ ऋतु आयी
सुमनों की मृदु पंखुड़ियों पर बिखर गई शबनम साथी॥
नाव ले चली हमें भँवर में रहबरही तो लूट गया
हमें जहन्नुम तक पहुँचाते हैं अब सभी धरम साथी॥