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याद तुम्हारी / रोहित रूसिया
Kavita Kosh से
मुझको सदा
छला करती है
याद तुम्हारी
अब मन की
कच्ची दीवारें
डर डर जाती हैं
महज कल्पना से
बिछु़डन की मर-मर जाती हैं
साँसों के संग
आती जाती याद तुम्हारी
खुश होता हूँ कभी,
कभी गुमसुम
हो जाता हूँ यादों में खो
अक्सर मैं खुद
में गुम जाता हूँ
जाने क्या से
क्या कर जाती
याद तुम्हारी
मुझको सदा
छला करती है
याद तुम्हारी