याद तुम्हे भी आता होगा / सरोज मिश्र
मुझे याद सब याद तुम्हें भी आता होगा।
हृदय तुम्हारा गीत पुराना गाता होगा।
सुधियों का रिश्ता है मन से,
छुवन और अहसासों का।
जैसे गली किनारे घर में,
आहट से आभासों का।
इन्हीं आहटों में उस परिचित आहट का आभास तुम्हारे,
मन को बार-बार सुलझाकर बार-बार उलझाता होगा।
मुझे याद सब याद तुम्हें भी आता होगा।
हृदय तुम्हारा गीत पुराना गाता होगा।
जल जाये चन्दन कितना भी,
लेकिन गन्ध नहीं जाती।
लाख उड़ाओ घर भीतर से,
मन की मैना फिर भी गाती।
ऐसे में झुंझलाकर अपनी आँख बन्द कर लेने वाले,
बन्द सीप से टूटा मोती अधरों पर टिक जाता होगा।
मुझे याद सब याद तुम्हें भी आता होगा।
हृदय तुम्हारा गीत पुराना गाता होगा।
अनायास जब किसी एक दिन,
यादों का बक्सा खोला।
हरी चूड़ियों साथ रखा जो,
कंगन ठिठका-फिर बोला।
वो करके सिंगार, मांग जब भरती होगीं शयनकक्ष में,
क्या दर्पण धीरे से हँसकर, उलझन और बढ़ाता होगा।
मुझे याद सब याद तुम्हें भी आता होगा।
हृदय तुम्हारा गीत पुराना गाता होगा।