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याद नहीं कितने पृष्ठों पर / अनुराधा पाण्डेय
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याद नहीं कितने पृष्ठों पर,
सखे! तुम्हारा प्यार लिखा।
नाम तुम्हारा लिख-लिख मैंने
हर चिंदी पर छोड़ दिया।
नित्य बनाया एक घरौंदा,
किन्तु लहर ने तोड़ दिया।
जितनी बार मिटाए जग ने,
मैंने उतनी बार लिखा।
सखे! तुम्हारा प्यार लिखा।
मैंने अपने मन मंदिर में
पारिजात अवधान लिए।
रही पूजती एकनिष्ठ मैं,
निज मन का भगवान लिए।
रहा देवता मौन सतत पर
मैंने तो मनुहार लिखा।
सखे! तुम्हारा प्यार लिखा।
चुनने को जब चली सुमन तो,
शूलों ने सत्कार किया।
रही सोचती किन भूलों ने,
मुझको यह अधिभार दिया।
घावों को सहलाया मैंने,
पीड़ा का शृंगार लिखा।
सखे! तुम्हारा प्यार लिखा