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याद पुरानी आ गई (शरद गीत) / उर्मिल सत्यभूषण

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याद पुरानी आ गई
मेरा दिल बहला गई
झील थी और नाव थी
हम थे तुम थे रात थी
तारों की बारात थी
खुशियाँ थी बरसा गई
थी पूनम की रात वो
और शरद का चांद वो
हमें देखती आंख वो
शायद थी शरमा गई
हम तुम तो मदहोश थे
चुप थे या बेहोश थे
चप्पू भी खामोश थे
नाव भंवर में आ गई
अस्फुट स्वर में गाती मैं
और लिपटती जाती मैं
शरमाती, घबराती मैं
लहरों सी लहरा गई
देखा लहरों का नर्त्तन
देखा पुष्पों का वर्षण
कुदरत का वो आकर्षण
रूप अनूप दिखा गई
हृदय हृदय से मिलते थे
फूल प्रेम के खिलते थे
जल में साये हिलते थे
छटा अनोखी छा गई।